बेशक आप एक उम्दा माँ होंगी, एक आदर्श पत्नी होंगी, एक आज्ञाकारी बहू होंगी, एक उत्कृष्ट बेटी होंगी और एक बढीया बहन होंगी लेकिन क्या आप स्वयं के लिए भी उतनी ही अच्छी हैं ? क्या कभी अपने लिए,अपने आत्मसम्मान के लिए, अपनी पसंद नापसंद के बारे में,अपने सपनों के बारे में सोचा है आपने ?
यदि आपने उप्रोक्त बताए गये सारे गुण हैं तो यकिनन आपका जवाब "ना" होगा क्योंकि हम भारतीय महिलाएं शायद इन्ही गुणो के लिए पसंद की जाती हैं | देखिए, ये अच्छी बात है कि हम भारतीय हैं और एक संस्कारित परिवार से नाता रखते हैं, इसके बावजूद भी हम अपनी इच्छाओं का अपने आत्मसम्मान का ख्याल तो रख ही सकतीं हैं | हम बिना किसी की अनुमति लिये अपने सपनो को पूरा करने के लिए कदम उठा सकतीं हैं | हम बगैर किसी दबाव के अपने निर्णय खुद ले सकतीं हैं | हम अपनी ज़िंदगी अपने तरिके से जी सकती हैं सिर्फ हमे अपना ख्याल रखने की आवश्यकता होगी |
यदि आपने उप्रोक्त बताए गये सारे गुण हैं तो यकिनन आपका जवाब "ना" होगा क्योंकि हम भारतीय महिलाएं शायद इन्ही गुणो के लिए पसंद की जाती हैं | देखिए, ये अच्छी बात है कि हम भारतीय हैं और एक संस्कारित परिवार से नाता रखते हैं, इसके बावजूद भी हम अपनी इच्छाओं का अपने आत्मसम्मान का ख्याल तो रख ही सकतीं हैं | हम बिना किसी की अनुमति लिये अपने सपनो को पूरा करने के लिए कदम उठा सकतीं हैं | हम बगैर किसी दबाव के अपने निर्णय खुद ले सकतीं हैं | हम अपनी ज़िंदगी अपने तरिके से जी सकती हैं सिर्फ हमे अपना ख्याल रखने की आवश्यकता होगी |
" सभ्य माहिलाएं कभी कभी ही इतिहास बना पाती हैं " - एलेन्वोर रूसेवेल्ट
रूसेवेल्ट के इन शब्दों को पढने के बाद ऐसा लगा जैसे दिल में कुछ जकडा हुआ था| मन बहुत उदास हो गया ऐसा एहसास हुआ जैसे मैं मूल्यहीन हूँ | मैने बहुत प्रयत्न किये अपना अस्तित्व खोजने के परंतु हर बार उस महिला को खडे पाया जो उप्रोक्त गुणो को अपने ऊपर लपेट कर खडी थी | पर मैं खुद को नहीं ढूँढ पाई |
वो दिन मेरे जीवन का सबसे खराब दिन था क्योंकि उस दिन मुझे अपनी कीमत पता लगी थी | लेकिन मैने भी ठान लिया था की बाकी बची ज़िंदगी को ऐसे व्यर्थ नहीं जाने दे सकती; तभी एक विचार आया कि क्यों ना पहले अपने आप को जाना जाए| इसके लिए मैने डायरी में अपनी पसंद नापसंद, सपने, उम्मीदें, और भी वो सबकुछ लिखा जो मैं चाहती थी | साथ ही, उन सब लिखी गई बातों का अनुसरण भी किया और मैने पाया की पहले की अपेक्षा मेरी ज़िंदगी बिल्कुल बदल चुकी है और बेहतर हो गयी है |
प्रिय महिला मित्रों,
हम यहाँ छोटी मोटी पसंद नापसंद जैसे पसंदिदा फ़िल्म, पकवान, रंग आदि की बात नहीं कर रहे हैं; हम बडे मुद्दे पर बात कर रहे हैं जो आपके आत्मसम्मान एवं अधिकार से जुडा है | कोशिश किजिये अपने शौक, प्रतिभा ,कमज़ोरी , क्षमताओं आदि को अपने अंदर से बाहर निकालने की जिससे आपका भी मन हल्का होगा | एक कहावत है : जो व्यक्ति दूसरो को खुश करने में लगा रहता है वो सहन भी ज़्यादा करता है | इसका ये अर्थ कदाचित नही है कि दूसरो की परवाह ना करें, बेशक किजिये लेकिन इसके लिए अपना मूल्य कम ना होने दें |
ऐसे में अपने दिल की सुनना बिल्कुल सही है क्योंकि जब तक आप खुद का ख्याल नहीं रखेंगी तब तक कोई नहीं रख सकता इसलिए आज से खुद को सबसे ऊपर रखिए और ज़िंदगी को बेहतर बनाईए |